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प्रेस- सांस्कृति एवं राष्ट्रवाद सब्जेक्टिव क्वेश्चन आंसर 2023 | Class 10th Social Science Press Sanskriti evam Rashtravad Subjective Question Answer

Class 10th Social Science Subjective Question

Social Science Class 10th Question Answer :- प्रेस- सांस्कृति एवं राष्ट्रवाद ( Press Sanskriti evam Rashtravad) Subjective Question दोस्तों यहां पर मैट्रिक परीक्षा 2023 सामाजिक विज्ञान सोशल साइंस क्लास 10th का इतिहास का सब्जेक्टिव क्वेश्चन आंसर दिया गया है एवं इसमें प्रेस- सांस्कृति एवं राष्ट्रवाद का लघु उत्तरीय प्रश्न तथा प्रेस- सांस्कृति एवं राष्ट्रवाद का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न दिया गया है तो इसे आप लोग शुरू से लेकर अंत तक एक बार अवश्य पढ़ें और इस वेबसाइट पर आपको प्रेस- सांस्कृति एवं राष्ट्रवाद का ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन आंसर भी मिल जाएगा।

प्रेस- सांस्कृति एवं राष्ट्रवाद ( Press Sanskriti evam Rashtravad) Subjective Question Answer 2023

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. छापाखाना यूरोप में कैसे पहुँचा ?

उत्तर ⇒ लकड़ी के ब्लॉक द्वारा होने वाली मुख्य कला समरकन्द पर्शिया-सीरिया मार्ग से (रेशम मार्ग) व्यापारियों द्वारा यूरोप में सर्वप्रथम रोम में प्रविष्ट हुई। 13वीं शताब्दी के अंतिम में रोमन मिशनरी एवं मार्कोपोलो द्वारा ब्लॉक प्रिंटिंग के नमूने यूरोप पहुँचे। इसी बीच कागज बनाने की कला 11वीं सदी में पूरब से यूरोप पहुँची। 1475 ई० में सर विलियम कैक्सटन मुद्रण कला को इंग्लैंड में लाए । पुर्तगाल में इसकी शुरूआत 1544 ई० में हुई, तत्पश्चात यह आधुनिक रूप में अन्य देशों में पहुँची।

2. गटेनवर्ग ने मद्रणयंत्र का विकास कैसे किया ?

उत्तर ⇒ गुटेनवर्ग ने मुद्रण टाइप बनाने हेतु शीशा, टीन और बिसमथ धातुओं से उचित मिश्रधातु बनाने का तरीका ढूँढा। उन्होंने आवश्यकता के अनुसार मुद्रणं स्याही भी बनाई और हैण्डप्रेस का प्रथम बार मुद्रण कार्य सम्पन्न करने में प्रयोग किया। इस हैण्डप्रेस में लकड़ी के चौकट में दो समतल भाग प्लेट एवं बेड-एक के नीचे दूसरा समान्तर रूप से रखे गए थे। कम्पोज किया हुआ टाइप मैटर बेड पर कस दिया जाता था एवं उस पर स्याही लगाकर तथा कागज रखकर प्लेट द्वारा दबाकर मुद्रित किया जाता था।

3. पाण्डुलिपि क्या है? इसकी क्या उपयोगिता है ?

उत्तर ⇒ भारत में छापाखाना के विकास के पहले हाथ से लिखकर पाण्डुलिपियों को तैयार करने की पुरानी और समृद्ध परम्परा थी। यहाँ संस्कृत, अरबी एवं फारसी साहित्य की अनेकानेक तस्वीरयुक्त सुलेखन कला से परिपूर्ण साहित्यों की रचनाएँ होती रहती थीं। इन्हें मजबूती प्रदान करने के लिए सजिल्द भी किया जाता था। फिर भी पाण्डुलिपियाँ काफी नाजुक और मँहगी होती थी। पाण्डुलिपियों की बनावट कठिन होने एवं प्रचुरता से उपलब्ध नहीं होने के कारण यह आम जनता के पहुँच से बाहर थी।

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4. लार्ड लिटन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को गतिमान बनाया। कैसे ?

उत्तर ⇒ अंग्रेजी समाचार पत्र सरकार का सदैव समर्थन करते थे। लेकिन देशी समाचार-पत्रों ने साम्राज्यवादी नीतियों के विरूद्ध राष्ट्रीय भावनाओं को उत्पन्न किया। सरकार और सरकारी अपव्यय की खबरों ने जनता के बीच भारी असंतोष को जन्म दिया। लिटन यह समझता था कि इस असंतोष का कारण मैकाले और मेटकॉफ की नीतियाँ हैं। फलतः 1878 ई० में देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम के माध्यम से समाचार-पत्रों को अधिक नियंत्रण में लाने का प्रयत्न किया। किन्तु राष्ट्रीय स्तर पर इसका विरोध हुआ जिससे राष्ट्रीयता की भावना पनपी और जन कांग्रेस में और उबाल लाने का काम किया।

5. इक्वीजीशन से आप क्या समझते हैं ? इसकी जरूरत क्यों पड़ी ?

उत्तर ⇒ धर्म विरोधी विचारों को दबाने के लिए कैथोलिक चर्च ने इक्वीजीशन आरंभ किया, जिसके माध्यम से विरोधी विचारधारा के प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं पर प्रतिबंध लगाया गया। इसकी आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि छपाई से नए बौद्धिक माहौल का निर्माण हुआ था एवं धर्म सुधार आन्दोलन के नए विचारों का फैलाव बड़ी तेजी से आम लोगों तक हुआ । अब अपेक्षाकृत कम पढ़े लिखे लोग भी धर्म को अलग-अलग व्याख्या से परिचित हुए । कृषक से लेकर बुद्धिजीवी तक बाइबिल की नई-नई व्याख्या करने लगे। ईश्वर एवं सृष्टि के बारे में रोमन कैथोलिक चर्च के मान्यताओं के विपरित विचार आने से कैथोलिक चर्च क्रुध हो गया जिसके कारण इक्वीजीशन शुरूकिया।

प्रेस- सांस्कृति एवं राष्ट्रवाद दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. भारतीय प्रेस की विशेषताओं को लिखें।

उत्तर ⇒ 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जागरूकता के अभाव के कारण सामान्य जनता से लेकर जमींदार तक की रूची राजनीति में नहीं थी। फलतः समाचार पत्रों का वितरण कम था। पत्रकारिता घाटे का व्यापार था। समाचार पत्रों का जनमत पर कोई विशेष प्रभाव नहीं होने के कारण अंग्रेज प्रशासक भी परवाह नहीं करते थे। फिर भी समाचार पत्रों द्वारा न्यायिक भेदभाव की पक्षपात, धार्मिक हस्तक्षेप और प्रजातीय भेदभाव की आलोचना करने से धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आन्दोलन को बल मिला और भारतीय जनमत जागृत हुआ।
1857 ई० के विद्रोह के पश्चात समाचार-पत्रों को प्रकृति का विभाजन प्रजातीय आधार पर किया जा सकता है। भारत में दो प्रकार के प्रेस थे एंग्लो-इंडियन प्रेस और भारतीय प्रेस । एंग्लोइंडियन की प्रकृति और आकार विदेशी था। यह भारतीयों में फूट डालो और शासन करो का पक्षधर था। यह दो सम्प्रदायों के बीच एकता के प्रयास का घोर आलोचक था। इसके द्वारा भारतीय नेताओं पर ‘राज’ के प्रति और वफादारी का सदैव आरोप लगाया जाता था। एंग्लो इंडियन प्रेस को विशेषाधिकार प्राप्त था। सरकारी खबरें एवं विज्ञापन इसी को दिया जाता था। सरकार के साथ इसका घनिष्ठ संबंध था। भारतीय प्रेस अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होते थे। 19वीं से 20वीं सदी में राजा राम मोहन राय, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, बाल गंगाधर तिलक दादा भाई नौरोजी, जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गाँधी, मुहम्मद अली, मौलाना आजाद आदि ने भारतीय प्रेस को शक्तिशाली एवं प्रभावकारी बनाया।

2. मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया ?

उत्तर ⇒ छापाखाना की संख्या में वृद्धि के परिणामस्वरूप पुस्तक निर्माण में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। 15वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक यूरोपीय बाजार में लगभग 2 करोड़ मुद्रित किताबें आई। इस मुद्रण क्रांति ने आम लोगों की जिंदगी ही बदल दी। आम लोगों का जुड़ाव सूचना, ज्ञान, संस्था और सत्ता से नजदीकी स्तर पर हुआ। जिसके कारण लोक चेतना एवं दृष्टि में बदलाव संभव हुआ। मद्रण क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी तबका तक पहँच गयी। किताबों की पहँच आसान होने से पढ़न की नई संस्कृति विकसित हई। एक नया पाठक वर्ग पदा हुआ। पढ़ने से उनके अंदर तार्किक क्षमता का विकास हुआ।
धर्म सुधारक मार्टिन, लूथर ने कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी पंचानवें स्थापनाएँ लिखीं। लूथर के लेख आम लोगों में काफी लोकप्रिय हुए। फलस्वरूप चर्च में विभाजन हुआ और प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार आन्दोलन की शुरूआत हुई। लूथर ने कहा “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा | इस तरह छपाई ने नए बौद्धिक माहौल का निर्माण किया एवं धर्म सुधार आन्दोलन के नए विचारों का फैलाव तीव्र गति से आम लोगों तक फैला । अब लोगों में आलोचनात्मक सवालिया और तार्किक दृष्टिकोण विकसित होने लगा। धर्म और आस्था को तर्क की कसौटी पर कसने से मानवतावादी दृष्टिकोण विकसित हुआ। इस तरह की नई सार्वजनिक दुनिया ने सामाजिक क्रांति को जन्म दिया।

सामाजिक विज्ञान ( इतिहास) पाठ -1 यूरोप में राष्ट्रवाद SUBJECTIVE QUESTION

3. 19वीं सदी में भारत में प्रेस की विकास को रेखांकित करें।

उत्तर ⇒ भारत में समाचार-पत्रों का उदय 19वीं शताब्दी की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। भारतीय द्वारा प्रकाशित प्रथम समाचार-पत्र 1816 ई० में गंगाधर भट्टाचार्य का साप्ताहिक ‘बंगाल गजट’ था। 1821 ई० में बंगाल में संवाद कौमदी तथा 1822 ई० में फारसी में प्रकाशित ‘मिरातुल’ अखबार के साथ प्रगतिशील राष्ट्रीय प्रवृत्ति के समाचार-पत्रों का प्रकाशन आरंभ हुआ। इन समाचार पत्रों के संस्थापक राजा राम मोहन राय थे, जिन्होंने इन्हें सामाजिक सुधार आन्दोलन का हथियार भी बनाया। अंग्रेजी में ‘ब्राह्मनिकल’ मैगजीन भी राम मोहन राय ने निकाला।
19वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा सम्पादित कई समाचार-पत्र थे, जिसमें टाइम्स ऑफ इंडिया 1861 ई०, स्टेट्समैन 1875 ई०, इंग्लिशमैन कलकत्ता से, मद्रास मेल मद्रास से, पायनियर 1865 ई० में इलाहाबाद से और 1876 ई० में सिविल और मिलिट्री गजट लाहौर से प्रकाशित होने लगे थे।
1858 ई० में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने ‘सोमप्रकाश’ एवं केशव चन्द्र सेन ने ‘सुलभ समाचार’ का बंगला में प्रकाशन किया। मोतीलाल घोष के संपादन में 1868 ई० में अंग्रेजी एवं बंग्ला साप्ताहिक के रूप में अमृत बाजार पत्रिका का प्रेस के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। कलकत्ता से हिन्दी बंगवासी, आर्यावर्त, उचितवक्ता, भारत मित्र आदि का प्रकाशन हुआ। 1899 ई० में अंग्रेजी मासिक ‘हिन्दुस्तान रिव्यु’ की स्थापना सच्चिदानंद सिंह ने की जिसका दृष्टिकोण राजनीतिज्ञ था। तिलक ने मराठा और केसरी का संपादन किया।

4. मुद्रण यंत्र की विकास यात्रा को रेखांकित करें। यह आधुनिक स्वरूप में कैसे पहुँचा ?

उत्तर ⇒ मानव लेखन-सामग्री के आविष्कार के पूर्व चट्टानों तथा गुफाओं में अनुभवों एवं प्रसंगों को खुदाई करके चित्रित करता था मिट्टी की टिकियों का उपयोग करता था। 105 ई० (AD) में टस्-लाई-लून (चीनी नागरिक) ने कपास एवं मलमल की पत्तियों से कागज बनाया। मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई।
मुद्रण कला का आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को जाता है। काफी दिनों तक मुद्रित सामग्री का चीन सबसे बड़ा उत्पादक था। 19वीं सदी तक आते-आते अतिरिक्त मांग को पूरा करने हेतू संघाई प्रिंट-संस्कृति का केन्द्र बन गया और हाथ की छपाई की जगह यांत्रिक छपाई ने ले ली। 13वीं सदी में रोमन मिशनरी एवं मार्कोपोलो द्वारा ब्लॉक प्रिंटिंग के नमूने यूरोप पहुँचे।1336 ई० में प्रथम पेपर मिल की स्थापना जर्मनी में हुई। इसी काल में शिक्षा के प्रसार, व्यापार और मिशनरी की बढ़ती गतिविधियों से सस्ती मुद्रित सामग्रियाँ की माँग तेजी से बढ़ी। विवादों में घिरने के बावजूद मेज में शुरू होकर पूर्णता को पहुँची मुद्रण कला का प्रसार शीघ्रता से यूरोपीय देशों और अन्य स्थानों पर हुआ। कौलग्ने, आग्सबर्ग, वेसल, रोम, वेनिस, पेरिस आदि शहर मुद्रण के प्रमुख केन्द्र के रूप में विकसित हुए। यही शहर आगे चलकर पुनर्जागरण के केन्द्र बने। 1475 ई० में सर विलियम कैक्सटन मुद्रणकला को इंग्लैण्ड में लाए तथा वेस्ट मिनस्टर कस्बे में उनका प्रथम प्रेस स्थापित हुआ। पुर्तगाल में इसकी शुरूआत 1544 ई० में हुई तत्पश्चात यह आधुनिक रूप में विश्व के अन्य देशों में पहुँची।

Press Sanskriti evam Rashtravad Subjective Question Answer

5. राष्ट्रीय आन्दोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित किया ?

उत्तर ⇒ प्रेस ने राष्ट्रीय आन्दोलन के हर पक्ष चाहे वह राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक हो या सांस्कृतिक सबको प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया। प्रेस के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय नेताओं ने ब्रिटिश सरकार की शोषणकारी नीति का पर्दाफाश करते हुए जागरण फैलाने का कार्य किया। सामाजिक सुधार के क्षेत्र में प्रेस ने सामाजिक रूढ़ियों, रीति-रिवाजों, अंधविश्वासों तथा अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव को लेकर लगातार आलोचनात्मक लेख प्रकाशित किए। राम मोहन राय, विद्यासागर, केशव चन्द्र सेन आदि जैसे समाज सुधारकों ने जनमत हेतु प्रेस को अपना हथियार बनाया। प्रेस भारत की विदेश नीति की भी खुब समीक्षा करती थी। बर्मा युद्ध, सिक्किम तथा तिब्बत के प्रति नीति, अफगान युद्ध, तुर्की के प्रति नीति की आलोचना प्रेस ने खुलेआम की। तुर्की के प्रति भारतीय मुसलमानों की भावनाओं को सरकार एवं जनता के समक्ष रखने में प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई अरमानिया एवं बाल्कन के मुद्दे पर मुस्लिम प्रेस जमींदार, अलहिलाल, तौहीद, हमदर्द, कामरेड आदि ने अपनी शक्ति का पुरा प्रयोग करते हुए देश में अंग्रेजों के विरूद्ध राष्ट्रीय भावना जागृत कर दी। इस प्रकार प्रेस ने सम्पूर्ण देश के लोगों के बीच सामाजिक कुरीतियों को दूर करने, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक एकता स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया


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