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कक्षा 10 हिंदी (गोधूलि भाग 2 काव्य खण्ड) पाठ -1 राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा Subjective Question 2023 || Ram Binu Birthe Jagi Janma Subjective Question Answer 2023

Class 10th Hindi Subjective Question

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अगर आप कक्षा 10 के छात्र हैं और मैट्रिक परीक्षा 2023 की तैयारी कर रहे हैं तो यहां पर आपको कक्षा 10 हिंदी काव्य खंड का राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा का सब्जेक्टिव क्वेश्चन नीचे दिया गया है। जो कि आपके मैट्रिक परीक्षा 2023 के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए शुरू से अंत तक जरूर पढ़ें। और आपको इस वेबसाइट पर राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा Objective Question भी पढने के लिए मिल जायेगा।

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राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा Subjective Question Answer 2023

1. कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है ?

उत्तर ⇒ कवि ईश्वर अथवा राम की अराधना या स्मरण के बिना संसार में जन्म लेने वाले मनुष्यों को व्यर्थ मानता है। कवि मानता है कि जो मनुष्य इस संसार में जन्म लेकर मोह-माया में फंसकर ईश्वर का स्मरण नहीं करता उसका इस संसार में जन्म लेना व्यर्थ है।

2. वाणी कब विष के समान हो जाती है ?

उत्तर: जब मनुष्य ईश्वर की चर्चा या अराधना न करके सांसारिकता की बातें करने लगता है या जब मनुष्य ईश्वर की अराधना की महिमा का गुणगान न करके सांसारिक पूजा-पाठ, कर्मकाण्ड या बाह्यडंबरों पर विश्वास करने लगता है तब वाणी विष के समान लगने लगती है।

3. नाम-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है ?

उत्तर ⇒ कवि गुरू नानक का मानना है कि इस दुःखमय संसार में केवल नामकीर्तन से ही अपने मन को शान्त किया जा सकता है। जब यही पूजा-पाठ, संध्या, तर्पण, वेशभूषा दूसरों को दिखाने के लिए किया जाता है तब मनुष्य के अंदर अहंकार की भावना उत्पन्न होती है। जिससे उसे मन की शांति नहीं मिलती है। कवि कहता है कि जब वह सच्चे मन से नाम-कीर्तन या ईश्वर की अराधना करता है तब जाकर उसे आन्तरिक शुद्धि प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त सारे आडंबर व्यर्थ है।

4. प्रथम पद के आधार पर बताएँ कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे ?

उत्तर ⇒ कवि गुरू नानक देव ने प्रथम पद के आधार पर धर्म-साधना के विभिन्न रूपों के विषय में बताया है। उस समय साधुजन अपने माथे पर विभूति लगाकर हाथ में डंड-कमण्डल लिए हुये, शरीर पर जनेऊ पहने, जटा का मुकुट बनाकर शरीर पर भस्म लगाकर नग्न अवस्था में अपनी मुक्ति के लिए तीर्थ-यात्रा करते थे। कवि का कहना है कि उस समय संसार में बाह्याडंबर की चमक-दमक थी। सब लोग इसी को धर्म साधना का मुख्य साधन मानते थे। उस समय समाज में लोग ऊँच-नीच की भावना देखने लगे थे।

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5. हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है ?

उत्तर ⇒ हरिरस से कवि का अभिप्राय है भक्तिरस। जिन लोगों ने सच्चे मन से ईश्वर भक्ति का स्वाद चख लिया हो उसे यह संसार असत्य एवं असहज लगने लगता है। कवि का आशय है कि जो ईश्वर रूपी रस में सरोवर हो जाता है, उसका हृदय दिव्य-प्रकाश से आलोकित हो उठता है।

6. कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है ?

उत्तर ⇒ कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास हर कण में, हर जगह है। कवि कहता है कि जब मनुष्य सच्चे मन से ब्रह्म का स्मरण करता है तो उसे शरीर के रोम-रोम में ब्रह्म के होने का
अहसास होने लगता है।

7. गुरू की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है ?

उत्तर ⇒ गुरू नानक का कहना है कि जिसने आशा और लोभ को त्याग दिया और जिसमें काम, क्रोध का वास नहीं होता है उसी की आत्मा में ब्रह्म का निवास होता है। जिस पर गुरू की कृपा होती है वही इन युक्तियों को पहचान पाता है।

8. व्याख्या करें :

(क) राम नाम बिनु अरूझि मरै।

उत्तर ⇒ सन्दर्भ: प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक गोधूलि भाग-2 इ के काव्यखण्ड से अवतरित है। इसके रचयिता गुरू नानक जी हैं।

नोट : इस पाठ के सभी व्याख्याओं का सन्दर्भ यही रहेगा।

प्रसंग : इस पंक्ति में कवि ने राम (ईश्वर) के नाम की महिमा पर बल दिया है।

व्याख्याः कवि कहता है कि ईश्वर की प्राप्ति सच्चे मन से ही हो सकती है। जो मनुष्य पूजा-पाठ, वेशभूषा, संध्या पूजा आदि में फँसे रहते हैं वे केवल भटकते ही रहते हैं। ऐसे लोगों को ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है। ईश्वर की प्राप्ति तभी संभव है, जब सच्चे और निर्मल मन से उसके नाम का स्मरण किया जाए।

कक्षा 10 वी हिंदी राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा सब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर 2023

(ख) कंचन माटी जाने।

उत्तर ⇒ सन्दर्भः प्रश्न 8 के (क) में देखें।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्ति में सच्ची साधना और भक्ति की विशेषता पर बल दिया गया है।

व्याख्या : गुरू नानक जी कहते हैं कि जब किसी को सत्य का ज्ञान हो जाता है तो उसके लिए सोना और मिट्टी एक समान हो जाता है। कहने का अर्थ है कि जब साधक मोह-माया को त्यागकर ईश्वर को पा लेता है तो उसके लिए सोने का मोल भी मिट्टी के समान होता है।

(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मन अपमाना।

उत्तर ⇒ सन्दर्भः प्रश्न 8 के (क) में देखें।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने श्रेष्ठ मनुष्य की पहचान बताई है।

व्याख्या : कवि कहता है कि जो सांसारिक मोह-माया का त्याग कर सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करता है, उससे सुख और दुख दोनों दूर रहते हैं। ऐसे मनुष्य अपनी भक्ति के माध्यम से एक चट्टान की तरह स्थिर रहते हैं। यही मनुष्य श्रेष्ठ होते हैं।

(घ) नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी।

उत्तर ⇒ सन्दर्भः प्रश्न 8 के (क) में देखें।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्ति में आत्मा-परमात्मा का मिलकर एक होने की अवस्था का वर्णन किया गया है। व्याख्या: कवि कहता है कि आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं होता है। माया के कारणवश साधक देख नहीं पाता है। परंतु जब माया का परदा हटता है तो आत्मा और परमात्मा मिलकर एक हो जाते हैं। जिस तरह पानी से मिलकर पानी सिर्फ पानी ही हो जाता है, उसमें कोई भेद नहीं होता उसी तरह आत्मा-परमात्मा का भेद भी समाप्त हो जाता है।

(ङ) राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलु मटि भ्रमना।

उत्तर ⇒ सन्दर्भः प्रश्न 8 के (क) में देखें ।

व्याख्याः कवि गुरू नानक कहते हैं कि जो मनुष्य राम का नाम नहीं लेते हैं, स्मरण नहीं करते हैं उनका जन्म लेना व्यर्थ है। अर्थात् मनुष्य के रूप में जन्म लेना बेकार है। लोग तो माया के वश में विष खाते हैं और विष रूपी वाणी बोलते हैं। इस संसार में ऐसे लोगों को कोई फल नहीं मिलता और मृग तृष्णा में ही मर जाते हैं।

(च) बिनु गुरसबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरूझि मरे।

उत्तर ⇒ सन्दर्भः प्रश्न 8 के (क) में देखें।

व्याख्या : गुरू नानक कहते हैं कि मनुष्य इस संसार में जितना चाहे ढोंग कर ले या इधर-उधर भटके लेकिन बिना गुरू अर्थात् ईश्वर के नाम के अलावा और किसी भी तरह मुक्ति नहीं मिल सकती है। बिना राम (ब्रह्म) के वह मुक्ति पाए बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा।

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(छ) गुरू परसादि राखिले जन कोउ हरिरस नानक झोलि पीआ।

उत्तर ⇒ सन्दर्भः प्रश्न 8 के (क) में देखें।

प्रसंगः प्रस्तुत पंक्ति में गुरूनानक अपनी मुक्ति पाने की ओर संकेत करते हैं।

व्याख्या : गुरू नानक कहते हैं कि मैंने राम (निराकार ईश्वर) की महिमा को समझ लिया है और उसकी भक्ति करके प्रसाद भी पा लिया है। ईश्वर के प्रसाद के रूप में हरिरस (ब्रह्मानंद) का पान कर लिया है अर्थात् नानक देव को मुक्ति मिल गई है।

(ज) जो नर दुख में दुख नहिं मानै सुख सनेह अरू भय नहिं जाके, कंचन माटी जान।

उत्तर ⇒ सन्दर्भः प्रश्न 8 के (क) में देखें।

प्रसंगः प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने संसार से मुक्ति पाने का उपाय बताया है।

व्याख्याः गुरू नानक कहते हैं कि जो मनुष्य दुःख में दु:ख और सुःख में सुख को नहीं मानता अर्थात् सुख-दुःख से परे होता है और वह निर्भय होता है, वही सच्चा साधक होता है। ऐसे साधक के लिए मिट्टी और सोने में कोई अंतर नहीं होता है। क्योंकि वह सांसारिकता से मुक्त होकर ब्रह्म को पा जाता है। इसलिए इस संसार की सभी वस्तु उसके लिए तुच्छ हैं।

(झ) आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तें रहै निरासा काम क्रोध जेहि परसे नाहिन तेंहि घट ब्रह्म निवासा।

सन्दर्भः प्रश्न 8 के (क) में देखें।

प्रसंगः प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ईश्वर का वास साधक के भीतर बताया है।

व्याख्याः गुरू नानक कहते हैं कि जो साधक आशा-निराशा का संपूर्ण त्याग कर चुका होता है, जिसने सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया हो और काम-क्रोध उसके पास भटकता भी न हो वही सच्चा साधक है। ऐसे सच्चे साधक में ही ब्रह्म का निवास होता है।

Class 10th Hindi Subjective Question 2023

Hindi Subjective Question
S.N गोधूलि भाग 2 ( गद्यखंड )
1. श्रम विभाजन और जाति प्रथा
2. विष के दाँत
3. भारत से हम क्या सीखें
4. नाखून क्यों बढ़ते हैं
5. नागरी लिपि
6. बहादुर
7. परंपरा का मूल्यांकन
8. जित-जित मैं निरखत हूँ
9. आवियों
10. मछली
11. नौबतखाने में इबादत
12. शिक्षा और संस्कृति
Hindi Subjective Question
S.N गोधूलि भाग 2 ( काव्यखंड )
1. राम बिनु बिरथे जगि जनमा
2. प्रेम-अयनि श्री राधिका
3. अति सूधो सनेह को मारग है
4. स्वदेशी
5. भारतमाता
6. जनतंत्र का जन्म
7. हिरोशिमा
8. एक वृक्ष की हत्या
9. हमारी नींद
10. अक्षर-ज्ञान
11. लौटकर आऊंगा फिर
12.  मेरे बिना तुम प्रभु
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